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गुप्त काल में मंदिर निर्माण की शुरुआत | Gupt Kaal Mein Mandir Nirman Ki Shuruaat
गुप्त काल (4वीं से 6वीं शताब्दी ईस्वी) भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम युग था, जिसे विशेष रूप से कला, वास्तुकला और धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। इस काल में मंदिर निर्माण की परंपरा विकसित हुई और स्थायी धार्मिक संरचनाओं का निर्माण प्रारंभ हुआ। गुप्तकालीन मंदिरों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे पहले के अस्थायी लकड़ी या मिट्टी के मंदिरों के स्थान पर पत्थरों से निर्मित किए गए, जिससे वे अधिक स्थायी और भव्य बने।
गुप्त शासकों ने हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं – विष्णु, शिव और शक्ति की पूजा को बढ़ावा दिया और उनके लिए सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया। इस काल के मंदिरों में मूर्तिकला, स्तंभों की उत्कृष्ट नक्काशी और दीवारों पर देवी-देवताओं के जीवन प्रसंगों का चित्रण देखा जा सकता है। यही वह समय था जब भारतीय मंदिर निर्माण नागर और द्रविड़ शैली के रूप में विकसित हुआ।
नागर शैली: उत्तर भारतीय मंदिर निर्माण कला | Nagar Shaili: Uttar Bhartiya Mandir Nirman Kala
नागर शैली की उत्पत्ति उत्तरी भारत में हुई और यह गुप्त काल के दौरान विकसित हुई। इस शैली की प्रमुख विशेषता यह थी कि मंदिरों में शिखर (ऊपर की ओर उठी हुई संरचना) का निर्माण किया जाता था, जो सममित और सीधा होता था। इस शैली में मंदिरों के गर्भगृह (मुख्य पूजा कक्ष) के ऊपर कुटी या रेखा शिखर होते थे, जो देखने में बहुस्तरीय प्रतीत होते थे।
गुप्त काल में निर्मित नागर शैली के मंदिरों में गर्भगृह (Sanctum Sanctorum), मंडप (Mandapa) और प्रदक्षिणा पथ (Parikrama Path) जैसे प्रमुख भाग होते थे। इस शैली में अधिकतर मंदिरों में गोपुरम (द्वार) नहीं होते थे, जो द्रविड़ शैली में देखे जाते हैं। नागर शैली के मंदिरों में दीवारें सीधी और ऊँचाई में अधिक होती थीं।
गुप्त काल के कुछ प्रसिद्ध नागर शैली के मंदिर निम्नलिखित हैं:
- दशावतार मंदिर, देवगढ़ (उत्तर प्रदेश) – यह विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसमें भव्य मूर्तिकला और उत्कृष्ट नक्काशी देखी जा सकती है।
- भीतरी मंदिर, प्रयागराज – यह मंदिर प्रारंभिक नागर शैली का एक उदाहरण है, जिसमें गर्भगृह और शिखर का प्रारंभिक स्वरूप देखा जा सकता है।
- सांची का मंदिर नं.
17 – यह मंदिर गुप्तकालीन नागर शैली की विशेषताओं को दर्शाता है, जिसमें वर्गाकार गर्भगृह और एक खुला मंडप है।
द्रविड़ शैली: दक्षिण भारतीय मंदिरों की विशेषता | Dravid Shaili: Dakshin Bhartiya Mandiron Ki Visheshata
द्रविड़ शैली की उत्पत्ति दक्षिण भारत में हुई और यह उत्तर भारतीय नागर शैली से भिन्न थी। इस शैली की सबसे प्रमुख विशेषता यह थी कि मंदिरों का गोपुरम (मुख्य प्रवेश द्वार) विशाल और भव्य होता था। गर्भगृह के ऊपर एक विमान (Shikhara-like structure) बनाया जाता था, जो उत्तर भारत के शिखर से अलग होता था।
द्रविड़ शैली में मंदिरों की संरचना अधिक विस्तृत और बहुस्तरीय होती थी। इसमें मुख्य मंदिर के साथ छोटे-छोटे उपमंदिर भी बनाए जाते थे। इस शैली के मंदिरों में स्तंभों की नक्काशी और मूर्तियों का विवरण अधिक जटिल होता था।
गुप्त काल के दौरान, इस शैली का प्रभाव दक्षिण भारत में अधिक था और बाद में पल्लव, चोल और पांड्य शासकों ने इसे और अधिक विकसित किया। इस शैली के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:
- कांची कामाक्षी मंदिर (तमिलनाडु) – यह मंदिर द्रविड़ शैली का प्रारंभिक उदाहरण है, जो बाद में विस्तारित किया गया।
- मामल्लपुरम के रथ मंदिर – यह मंदिर चट्टानों को काटकर बनाए गए और यह प्रारंभिक द्रविड़ शैली के मंदिरों में शामिल हैं।
- कैलाशनाथ मंदिर, कांचीपुरम – यह मंदिर पल्लव शासकों द्वारा निर्मित किया गया था और इसमें गुप्तकालीन स्थापत्य कला का प्रभाव देखा जा सकता है।
नागर और द्रविड़ शैली में अंतर | Nagar Aur Dravid Shaili Mein Antar
गुप्त काल में मंदिर निर्माण की ये दोनों शैलियाँ अपने-अपने क्षेत्रों में विकसित हुईं और इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर देखे जा सकते हैं:
- नागर शैली में मंदिरों के ऊपर सीधा और सममित शिखर होता था, जबकि द्रविड़ शैली में विमान (गुंबदनुमा संरचना) बनाई जाती थी।
- नागर शैली के मंदिरों में गोपुरम नहीं होते थे, जबकि द्रविड़ शैली के मंदिरों में विशाल गोपुरम बनाए जाते थे।
- नागर शैली में मंदिरों की दीवारें अधिक ऊँची और सीधी होती थीं, जबकि द्रविड़ शैली में मंदिरों का विस्तार क्षैतिज रूप में होता था।
- नागर शैली के मंदिरों में एकल संरचना होती थी, जबकि द्रविड़ शैली के मंदिरों में मुख्य मंदिर के आसपास छोटे मंदिर बनाए जाते थे।
गुप्तकालीन मंदिरों का भारतीय वास्तुकला पर प्रभाव | Guptkaleen Mandiron Ka Bhartiya Vastukala Par Prabhav
गुप्तकाल में विकसित मंदिर निर्माण की परंपरा ने आगे चलकर भारतीय स्थापत्य कला को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। गुप्त काल के मंदिरों की संरचना और डिजाइन ने पल्लव, चोल, चालुक्य और राष्ट्रकूट शासकों के काल में भी अपनी छाप छोड़ी। बाद में बनने वाले कई भव्य मंदिर, जैसे बृहदेश्वर मंदिर (तमिलनाडु) और खजुराहो के मंदिर (मध्य प्रदेश), गुप्त काल की स्थापत्य परंपरा से प्रेरित रहे।
मुख्य बिंदु (Key Points)
1.
गुप्त काल में मंदिर निर्माण की शुरुआत पत्थरों से की गई, जिससे धार्मिक स्थलों को स्थायित्व मिला।
2.
नागर शैली उत्तर भारत में विकसित हुई, जिसमें शिखर की प्रमुखता थी, जबकि द्रविड़ शैली दक्षिण भारत में विकसित हुई, जिसमें गोपुरम और विमान महत्वपूर्ण थे।
3.
दशावतार मंदिर (उत्तर प्रदेश), भीतरी मंदिर (प्रयागराज), और सांची मंदिर नं. 17 नागर शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
4.
कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर और मामल्लपुरम के रथ मंदिर द्रविड़ शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
5.
गुप्तकालीन मंदिर निर्माण ने भारतीय स्थापत्य कला पर गहरा प्रभाव डाला, जिसे बाद के शासकों ने और अधिक विकसित किया।